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दहमी में 637 साल से प्रज्वलित है मनसा मां की ज्योति, संवत 1437 से लगी है घंटी
7 वर्ष पहले
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चढ़ावे-सहयोग से व्यवस्थाओं का संचालन
मंदिरकमेटी व्यवस्थापक परमानंद शर्मा, सत्यप्रकाश, पंकज शर्मा ने बताया कि र|ा ग्वाला अविवाहित थे इसलिए जंगल में ही रहा करते थे। रेवड़ की एक गाय दिन भर जंगल में कैर की एक झाड़ी के पास ही खड़ी रहती थी। उत्सुकतावश र|ा वहां पहुंचा तो उसे गाय के स्थान पर माता ने साक्षात दर्शन दिए। र|ा ने माता को नमन कर आशीष लिया और वहां पूजा करने लगा। गांव के लोग भी पूजा में शामिल होने लगे। कालांतर में नारनौल सेठों श्रद्धालुओं ने यहां मंदिर बनवा प्रतिमा प्रतिष्ठित की। शर्मा परिवार का कहना है कि मंदिर के चढ़ावे और सहयोग से व्यवस्थाओं का संचालन होता है।
बहरोड़. दहमी-हमजापुर स्थित मनसा माता का मंदिर।
बहरोड़. दहमी-हमजापुर स्थित मनसा माता के मंदिर का प्रवेश द्वार।
मंदिर बनवाने का घमंड हुआ तो टूटा गुम्बद : किवदंतीहै कि नारनौल का सेठ भूषण शोभराम मंदिर बनाने पर घमंड करने लगा। एक दिन मंदिर का गुम्बद फूट गया तो लोगों ने उसे मंदिर बुलाया। सेठ मंदिर पहुंचा तो माता ने प्रकट होकर कहा कि मंदिर बनवाने का तुझमें घमंड जाग गया है। सेठ ने माता के पैर पकड़ माफी मांगी और पुन: गुम्बद बना। तब कांस्य-ताम्र घंट भी चढ़ाया जो आज तक लगा है। इस पर संवत 1437 अंकित है।
नवरात्र में लक्खी मेला : चैत्रशरद नवरात्र में मंदिर पर लक्खी मेले में राजस्थान के साथ हरियाणा, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र तक से श्रद्धालु पहुंचते हैं। नव-विवाहिताओं के गठजोड़ा जात नवजात शिशुओं के मुंडन कार्यक्रम होते हैं। नवरात्र में हर रोज माता के प्रसाद की सवामणी होती है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी यहां माता का आशीर्वाद लेने पहुंची। मंदिर की पूजा पाठ र|ा ग्वाले के वंशज करते हैं।
धार्मिकपर्यटन का भव्य स्थान : हाईवेके समीप होने से बना यह मंदिर चारों ओर कैर, पीपल, बरगद, नीम के सघन पेड़ों से हर भरा रहता है। यहां की रमणीयता और शांति लोगों को आकर्षित कर लेती है। इससे अब मंदिर परिसर पर्यटन स्थल के रूप में भी जाने जाने लगा है। लोग दर्शनों के साथ यहां राहत भरे क्षण बिताने आते हैं। मंदिर के भव्य परिसर में बरामदा, हाल, धर्मशाला सहित बिजली-पानी की समुचित व्यवस्थाएं हैं। ऐेतिहासिक मंदिर परिसर आज भी मंदिर अच्छी स्थिति में है।
भास्कर न्यूज | बहरोड़
हाईवेपर दहमी-हमजापुर में 21 बीघा परिसर में स्थित मनसा माता का ऐतिहासिक मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। मंदिर में आज भी संवत् 1437 में चढ़ाया कांस्य-ताम्र का घंट लगा है। मान्यता है कि मंदिर करीब साढ़े छह सौ साल पुराना है। उस समय र|ा नामक ग्वाले को माता ने कैर की झाड़ी में दर्शन दिए। ग्वाल ने यहां मंदिर की स्थापना की और ज्योति प्रज्वलित की। जो तब से अखंड रूप से प्रज्वलित है। मंदिर का 84 कोस का परिक्रमा मार्ग है।
कथायह भी: माताके कहने पर र|ा ने की 2 शादी
र|ाग्वाला गायों की सेवा करता और जंगल में रहता था। इसलिए शादी भी नहीं की, लेकिन एक दिन माता ने दर्शन देकर कहा कि तेरे बाद मंदिर की पूजा अर्चना कौन करेगा। जिससे र|ा ने दो शादियां की। जिसके तीन पुत्र हुए। एक पुत्र हमजापुर में रहने लगा तथा दो पुत्र दहमी में रहने लगे। र|ा के तीनों पुत्रों के परिवारों के सदस्य अब पूजा अर्चना करते हैं।
मंदिरकमेटी व्यवस्थापक परमानंद शर्मा, सत्यप्रकाश, पंकज शर्मा ने बताया कि र|ा ग्वाला अविवाहित थे इसलिए जंगल में ही रहा करते थे। रेवड़ की एक गाय दिन भर जंगल में कैर की एक झाड़ी के पास ही खड़ी रहती थी। उत्सुकतावश र|ा वहां पहुंचा तो उसे गाय के स्थान पर माता ने साक्षात दर्शन दिए। र|ा ने माता को नमन कर आशीष लिया और वहां पूजा करने लगा। गांव के लोग भी पूजा में शामिल होने लगे। कालांतर में नारनौल सेठों श्रद्धालुओं ने यहां मंदिर बनवा प्रतिमा प्रतिष्ठित की। शर्मा परिवार का कहना है कि मंदिर के चढ़ावे और सहयोग से व्यवस्थाओं का संचालन होता है।
बहरोड़. दहमी-हमजापुर स्थित मनसा माता का मंदिर।
बहरोड़. दहमी-हमजापुर स्थित मनसा माता के मंदिर का प्रवेश द्वार।
मंदिर बनवाने का घमंड हुआ तो टूटा गुम्बद : किवदंतीहै कि नारनौल का सेठ भूषण शोभराम मंदिर बनाने पर घमंड करने लगा। एक दिन मंदिर का गुम्बद फूट गया तो लोगों ने उसे मंदिर बुलाया। सेठ मंदिर पहुंचा तो माता ने प्रकट होकर कहा कि मंदिर बनवाने का तुझमें घमंड जाग गया है। सेठ ने माता के पैर पकड़ माफी मांगी और पुन: गुम्बद बना। तब कांस्य-ताम्र घंट भी चढ़ाया जो आज तक लगा है। इस पर संवत 1437 अंकित है।
नवरात्र में लक्खी मेला : चैत्रशरद नवरात्र में मंदिर पर लक्खी मेले में राजस्थान के साथ हरियाणा, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र तक से श्रद्धालु पहुंचते हैं। नव-विवाहिताओं के गठजोड़ा जात नवजात शिशुओं के मुंडन कार्यक्रम होते हैं। नवरात्र में हर रोज माता के प्रसाद की सवामणी होती है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी यहां माता का आशीर्वाद लेने पहुंची। मंदिर की पूजा पाठ र|ा ग्वाले के वंशज करते हैं।
धार्मिकपर्यटन का भव्य स्थान : हाईवेके समीप होने से बना यह मंदिर चारों ओर कैर, पीपल, बरगद, नीम के सघन पेड़ों से हर भरा रहता है। यहां की रमणीयता और शांति लोगों को आकर्षित कर लेती है। इससे अब मंदिर परिसर पर्यटन स्थल के रूप में भी जाने जाने लगा है। लोग दर्शनों के साथ यहां राहत भरे क्षण बिताने आते हैं। मंदिर के भव्य परिसर में बरामदा, हाल, धर्मशाला सहित बिजली-पानी की समुचित व्यवस्थाएं हैं। ऐेतिहासिक मंदिर परिसर आज भी मंदिर अच्छी स्थिति में है।
भास्कर न्यूज | बहरोड़
हाईवेपर दहमी-हमजापुर में 21 बीघा परिसर में स्थित मनसा माता का ऐतिहासिक मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। मंदिर में आज भी संवत् 1437 में चढ़ाया कांस्य-ताम्र का घंट लगा है। मान्यता है कि मंदिर करीब साढ़े छह सौ साल पुराना है। उस समय र|ा नामक ग्वाले को माता ने कैर की झाड़ी में दर्शन दिए। ग्वाल ने यहां मंदिर की स्थापना की और ज्योति प्रज्वलित की। जो तब से अखंड रूप से प्रज्वलित है। मंदिर का 84 कोस का परिक्रमा मार्ग है।
कथायह भी: माताके कहने पर र|ा ने की 2 शादी
र|ाग्वाला गायों की सेवा करता और जंगल में रहता था। इसलिए शादी भी नहीं की, लेकिन एक दिन माता ने दर्शन देकर कहा कि तेरे बाद मंदिर की पूजा अर्चना कौन करेगा। जिससे र|ा ने दो शादियां की। जिसके तीन पुत्र हुए। एक पुत्र हमजापुर में रहने लगा तथा दो पुत्र दहमी में रहने लगे। र|ा के तीनों पुत्रों के परिवारों के सदस्य अब पूजा अर्चना करते हैं।
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